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Vegetable cultivation

मटर की खेती से संबंधित अहम पहलुओं की विस्तृत जानकारी

मटर की खेती से संबंधित अहम पहलुओं की विस्तृत जानकारी

मटर की खेती सामान्य तौर पर सर्दी में होने वाली फसल है। मटर की खेती से एक अच्छा मुनाफा तो मिलता ही है। साथ ही, यह खेत की उर्वराशक्ति को भी बढ़ाता है। इसमें उपस्थित राइजोबियम जीवाणु भूमि को उपजाऊ बनाने में मदद करता है। अगर मटर की अगेती किस्मों की खेती की जाए तो ज्यादा उत्पादन के साथ भूरपूर मुनाफा भी प्राप्त किया जा सकता है। इसकी कच्ची फलियों का उपयोग सब्जी के रुप में उपयोग किया जाता है. यह स्वास्थ्य के लिए भी काफी फायदेमंद होती है. पकने के बाद इसकी सुखी फलियों से दाल बनाई जाती है.

मटर की खेती

मटर की खेती सब्जी फसल के लिए की जाती है। यह कम समयांतराल में ज्यादा पैदावार देने वाली फसल है, जिसे व्यापारिक दलहनी फसल भी कहा जाता है। मटर में राइजोबियम जीवाणु विघमान होता है, जो भूमि को उपजाऊ बनाने में मददगार होता है। इस वजह से
मटर की खेती भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए भी की जाती है। मटर के दानों को सुखाकर दीर्घकाल तक ताजा हरे के रूप में उपयोग किया जा सकता है। मटर में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व जैसे कि विटामिन और आयरन आदि की पर्याप्त मात्रा मौजूद होती है। इसलिए मटर का सेवन करना मानव शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। मटर को मुख्यतः सब्जी बनाकर खाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। यह एक द्विबीजपत्री पौधा होता है, जिसकी लंबाई लगभग एक मीटर तक होती है। इसके पौधों पर दाने फलियों में निकलते हैं। भारत में मटर की खेती कच्चे के रूप में फलियों को बेचने तथा दानो को पकाकर बेचने के लिए की जाती है, ताकि किसान भाई ज्यादा मुनाफा उठा सकें। अगर आप भी मटर की खेती से अच्छी आमदनी करना चाहते है, तो इस लेख में हम आपको मटर की खेती कैसे करें और इसकी उन्नत प्रजातियों के बारे में बताऐंगे।

मटर उत्पादन के लिए उपयुक्त मृदा, जलवायु एवं तापमान

मटर की खेती किसी भी प्रकार की उपजाऊ मृदा में की जा सकती है। परंतु, गहरी दोमट मृदा में मटर की खेती कर ज्यादा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त क्षारीय गुण वाली भूमि को मटर की खेती के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 6 से 7.5 बीच होना चाहिए। यह भी पढ़ें: मटर की खेती का उचित समय समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु मटर की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। भारत में इसकी खेती रबी के मौसम में की जाती है। क्योंकि ठंडी जलवायु में इसके पौधे बेहतर ढ़ंग से वृद्धि करते हैं तथा सर्दियों में पड़ने वाले पाले को भी इसका पौधा सहजता से सह लेता है। मटर के पौधों को ज्यादा वर्षा की जरूरत नहीं पड़ती और ज्यादा गर्म जलवायु भी पौधों के लिए अनुकूल नहीं होती है। सामान्य तापमान में मटर के पौधे बेहतर ढ़ंग से अंकुरित होते हैं, किन्तु पौधों पर फलियों को बनने के लिए कम तापमान की जरूरत होती है। मटर का पौधा न्यूनतम 5 डिग्री और अधिकतम 25 डिग्री तापमान को सहन कर सकता है।

मटर की उन्नत प्रजातियां

आर्केल

आर्केल किस्म की मटर को तैयार होने में 55 से 60 दिन का वक्त लग जाता है। इसका पौधा अधिकतम डेढ़ फीट तक उगता है, जिसके बीज झुर्रीदार होते हैं। मटर की यह प्रजाति हरी फलियों और उत्पादन के लिए उगाई जाती है। इसकी एक फली में 6 से 8 दाने मिल जाते हैं।

लिंकन

लिंकन किस्म की मटर के पौधे कम लम्बाई वाले होते हैं, जो बीज रोपाई के 80 से 90 दिन उपरांत पैदावार देना शुरू कर देते हैं। मटर की इस किस्म में पौधों पर लगने वाली फलियाँ हरी और सिरे की ऊपरी सतह से मुड़ी हुई होती है। साथ ही, इसकी एक फली से 8 से 10 दाने प्राप्त हो जाते हैं। जो स्वाद में बेहद ही अधिक मीठे होते हैं। यह किस्म पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए तैयार की गयी है। यह भी पढ़ें: सब्ज्यिों की रानी मटर की करें खेती

बोनविले

बोनविले मटर की यह किस्म बीज रोपाई के लगभग 60 से 70 दिन उपरांत पैदावार देना शुरू कर देती है। इसमें निकलने वाला पौधा आकार में सामान्य होता है, जिसमें हल्के हरे रंग की फलियों में गहरे हरे रंग के बीज निकलते हैं। यह बीज स्वाद में मीठे होते हैं। बोनविले प्रजाति के पौधे एक हेक्टेयर के खेत में तकरीबन 100 से 120 क्विंटल की उपज दे देते है, जिसके पके हुए दानो का उत्पादन लगभग 12 से 15 क्विंटल होता है।

मालवीय मटर – 2

मटर की यह प्रजाति पूर्वी मैदानों में ज्यादा पैदावार देने के लिए तैयार की गयी है। इस प्रजाति को तैयार होने में 120 से 130 दिन का वक्त लग जाता है। इसके पौधे सफेद फफूंद और रतुआ रोग रहित होते हैं, जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 25 से 30 क्विंटल के आसपास होता है।

पंजाब 89

पंजाब 89 प्रजाति में फलियां जोड़े के रूप में लगती हैं। मटर की यह किस्म 80 से 90 दिन बाद प्रथम तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है, जिसमें निकलने वाली फलियां गहरे रंग की होती हैं तथा इन फलियों में 55 फीसद दानों की मात्रा पाई जाती है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 60 क्विंटल का उत्पादन दे देती है।

पूसा प्रभात

मटर की यह एक उन्नत क़िस्म है, जो कम समय में उत्पादन देने के लिए तैयार की गई है | इस क़िस्म को विशेषकर भारत के उत्तर और पूर्वी राज्यों में उगाया जाता है। यह क़िस्म बीज रोपाई के 100 से 110 दिन पश्चात् कटाई के लिए तैयार हो जाती है, जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 40 से 50 क्विंटल की पैदावार दे देती है। यह भी पढ़ें: तितली मटर (अपराजिता) के फूलों में छुपे सेहत के राज, ब्लू टी बनाने में मददगार, कमाई के अवसर अपार

पंत 157

यह एक संकर किस्म है, जिसे तैयार होने में 125 से 130 दिन का वक्त लग जाता है। मटर की इस प्रजाति में पौधों पर चूर्णी फफूंदी और फली छेदक रोग नहीं लगता है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 70 क्विंटल तक की पैदावार दे देती है।

वी एल 7

यह एक अगेती किस्म है, जिसके पौधे कम ठंड में सहजता से विकास करते हैं। इस किस्म के पौधे 100 से 120 दिन के समयांतराल में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके पौधों में निकलने वाली फलियां हल्के हरे और दानों का रंग भी हल्का हरा ही पाया जाता है। इसके साथ पौधों पर चूर्णिल आसिता का असर देखने को नहीं मिलता है। इस किस्म के पौधे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 70 से 80 क्विंटल की उपज दे देते हैं।

मटर उत्पादन के लिए खेत की तैयारी किस प्रकार करें

मटर उत्पादन करने के लिए भुरभुरी मृदा को उपयुक्त माना जाता है। इस वजह से खेत की मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खेत की सबसे पहले गहरी जुताई कर दी जाती है। दरअसल, ऐसा करने से खेत में उपस्थित पुरानी फसल के अवशेष पूर्णतय नष्ट हो जाते हैं। खेत की जुताई के उपरांत उसे कुछ वक्त के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है, इससे खेत की मृदा में सही ढ़ंग से धूप लग जाती है। पहली जुताई के उपरांत खेत में 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के मुताबिक देना पड़ता है।

मटर के पौधों की सिंचाई कब और कितनी करें

मटर के बीजों को नमी युक्त भूमि की आवश्यकता होती है, इसके लिए बीज रोपाई के शीघ्र उपरांत उसके पौधे की रोपाई कर दी जाती है। इसके बीज नम भूमि में बेहतर ढ़ंग से अंकुरित होते हैं। मटर के पौधों की पहली सिंचाई के पश्चात दूसरी सिंचाई को 15 से 20 दिन के समयांतराल में करना होता है। तो वहीं उसके उपरांत की सिंचाई 20 दिन के उपरांत की जाती है।

मटर के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण किस प्रकार करें

मटर के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक विधि का उपयोग किया जाता है। इसके लिए बीज रोपाई के उपरांत लिन्यूरान की समुचित मात्रा का छिड़काव खेत में करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त अगर आप प्राकृतिक विधि का उपयोग करना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको बीज रोपाई के लगभग 25 दिन बाद पौधों की गुड़ाई कर खरपतवार निकालनी होती है। इसके पौधों को सिर्फ दो से तीन गुड़ाई की ही आवश्यकता होती है। साथ ही, हर एक गुड़ाई 15 दिन के समयांतराल में करनी होती है।
मार्च-अप्रैल में इन टॉप सब्जियों की खेती से मिलेगा मोटा मुनाफा

मार्च-अप्रैल में इन टॉप सब्जियों की खेती से मिलेगा मोटा मुनाफा

आजकल रबी की फसल की कटाई का समय चल रहा है। मार्च-अप्रैल में किसान सब्जियों की बुवाई करना शुरू कर देते हैं। लेकिन किसान कौन सी सब्जी का उत्पादन करें इसका चयन करना काफी कठिन होता है। किसानों को अच्छा मुनाफा देने वाली सब्जियों के बारे में हम आपको जानकारी देने वाले हैं। 

दरअसल, आज हम भारत के कृषकों के लिए मार्च-अप्रैल के माह में उगने वाली टॉप 5 सब्जियों की जानकारी लेकर आए हैं, जो कम वक्त में बेहतरीन उपज देती हैं। 

भिंडी की फसल (Okra Crop)

भिंडी मार्च-अप्रैल माह में उगाई जाने वाली सब्जी है। दरअसल, भिंडी की फसल (Bhindi Ki Fasal) को आप घर पर गमले अथवा ग्रो बैग में भी सुगमता से लगा सकते हैं। 

भिंडी की खेती के लिए तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त माना जाता है। आमतौर पर भिंडी का इस्तेमाल सब्जी बनाने में और कभी-कभी सूप तैयार करने में किया जाता है।

खीरा की फसल (Cucumber Crop)

किसान भाई खीरे की खेती (Cucumber cultivation) से काफी अच्छा लाभ कमा सकते हैं। दरअसल, खीरा में 95% प्रतिशत पानी की मात्रा होती है, जो गर्मियों में स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होती है। गर्मियों के मौसम में खीरा की मांग भी बाजार में काफी ज्यादा देखने को मिलती है। 

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अब ऐसी स्थिति में अगर किसान अपने खेत में इस समय खीरे की खेती करते हैं, तो वह काफी शानदार कमाई कर सकते हैं। खीरा गर्मी के सीजन में काफी अच्छी तरह विकास करता है। इसलिए बगीचे में बिना किसी दिक्कत-परेशानी के मार्च-अप्रैल में लगाया जा सकता है। 

बैंगन की फसल (Brinjal Crop)

बैंगन के पौधे (Brinjal Plants) को रोपने के लिए दीर्घ कालीन गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। साथ ही, बैंगन की फसल के लिए तकरीबन 13-21 डिग्री सेल्सियस रात का तापमान अच्छा होता है। क्योंकि, इस तापमान में बैंगन के पौधे काफी अच्छे से विकास करते हैं।

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ऐसी स्थिति में यदि आप मार्च-अप्रैल के माह में बैंगन की खेती (baingan ki kheti) करते हैं, तो आगामी समय में इससे आप अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं। 

धनिया की फसल (Coriander Crop)

एक अध्यन के अनुसार, हरा धनिया एक प्रकार से जड़ी-बूटी के समान है। हरा धनिया सामान्य तौर पर सब्जियों को और अधिक स्वादिष्ट बनाने के कार्य करता है। 

इसे उगाने के लिए आदर्श तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस काफी अच्छा माना जाता है। ऐसे में भारत के किसान धनिया की खेती (Coriander Cultivation) मार्च-अप्रैल के माह में सुगमता से कर सकते हैं।

प्याज की फसल (Onion Crop)

प्याज मार्च-अप्रैल में लगाई जाने वाली सब्जियों में से एक है। प्याज की बुवाई के लिए 10-32 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए। प्याज के बीज हल्के गर्म मौसम में काफी अच्छे से विकास करते हैं। इस वजह से प्याज रोपण का उपयुक्त समय वसंत ऋतु (Spring season) मतलब कि मार्च- अप्रैल का महीना होता है। 

बतादें, कि प्याज की बेहतरीन प्रजाति के बीजों की फसल लगभग 150-160 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। हालांकि, हरी प्याज की कटाई (Onion Harvesting) में 40-50 दिन का वक्त लगता है।

जून में करें इन सब्जियों की खेती मिलेगा अच्छा-खासा मुनाफा

जून में करें इन सब्जियों की खेती मिलेगा अच्छा-खासा मुनाफा

किसान भाई जून के महीने में बहुत सारी फसलों की बुवाई कर सकते हैं। क्योंकि, जून में तापमान भी काफी कम रहेगा और बारिश भी पर्याप्त मात्रा में होती रहेगी। 

आज हम आपको ऐसी सब्जियों के विषय में बताने वाले हैं, जो कि बेहद कम समयावधि में तैयार हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त इनकी खेती से किसान अगले तीन चार माह तक बंपर आमदनी कर सकते हैं। 

जून में इन बेलवर्गीय फसलों की खेती करें 

बेलवर्गीय फसलों में किसान जून के माह में करेला, गिलकी, लौकी, तोरई और सेम की फसलों की बिजाई कर सकते हैं। बरसात के मौसम में ये बेलवर्गीय फसल अधिक उपज प्रदान करती हैं। साथ ही, रोग मुक्त भी रहते हैं। 

यदि देखरेख अच्छी तरीके से हो तो करेला, गिलकी, लौकी, तोरई और सेम 30 से 40 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं। वहीं, इनसे चार-पांच माह तक उपज प्राप्त की जा सकती है, जिससे किसानों की शानदार आमदनी हो सकती है।

जून में करें मेथी, पालक और धनिया की खेती 

मेंथी, पालक और धनिया की गिनती नकदी फसलों में की जाती है। आप इन सब्जियों की फसलों की बुवाई 15 जून के आसपास कर सकते हैं। इन्हें मॉनसून की बारिश होने के दो सप्ताह बाद या दो पहले खेतों में लगाया जाता है। 

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ये तीनों सब्जियां बेहद कम समय में पककर तैयार हो जाती हैं। वहीं, बरसात के वक्त बाजार में इनकी कीमत भी सामान्य से ज्यादा मिलती है। ऐसे में किसान जून माह में मेथी, पालक और धनिया उगाकर काफी अच्छी आमदनी कर सकते हैं।

जून में करें भिंडी, खीरा और प्याज की खेती

जून और जुलाई के महीने में किसान भिंडी व खीरा की फसल भी लगाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं। अगस्त से इसकी पैदावार मिलनी चालू हो जाती है, जो अक्टूबर से नवंबर माह तक मिलता रहता है। 

बाजार में इन सब्जियों के भाव भी सदैव अच्छे मिलते हैं। इसके अतिरिक्त बाजार में प्याज की कीमत में हमेशा उतार-चढाव देखने को मिलता है। 

ऐसी स्थिति में किसान जून में प्याज की भी खेती करके शानदार मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। बुवाई के बाद प्याज को तैयार होने में 30 से 40 दिन का वक्त लग जाता है। उसके पश्चात कटाई के साथ कमाई शुरू हो जाती है।

ग्रीष्मकालीन तोरई की खेती किसानों को कम समय में अच्छा लाभ दिला सकती है

ग्रीष्मकालीन तोरई की खेती किसानों को कम समय में अच्छा लाभ दिला सकती है

किसान भाई तोरई की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। महाराष्ट्र में किसान इसकी बड़े स्तर पर खेती करते हैं। तोरई की बाजारों में सदैव मांग बनी रहती है। यह एक बेल वाली कद्दूवर्गीय सब्जी है, जिसको बड़े खेतों के अतिरिक्त छोटी गृह वाटिका में भी उगाया जा सकता है। 

तोरई की खेती को कद्दूवर्गीय फसलों में शुमार किया जाता है, जो कि अत्यंत फायदेमंद खेती मानी जाती है। तोरई की खेती को व्यावसायिक फसल भी कहा जाता है। 

किसान भाई यदि इसकी वैज्ञानिक तरीके से खेती करें तो इसकी फसल से उनको अच्छी उपज हांसिल हो सकती है। परिणामस्वरूप आमदनी भी शानदार प्राप्त की जा सकती हैं। तोरई की खेती भारतभर में की जाती है। वहीं, महाराष्ट्र में 1147 हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती की जाती हैं। 

इसकी खेती ग्रीष्म और वर्षा खरीफ दोनों ऋतुओं में की जाती हैं। इसकी खेती को नगदी के रूप में व्यावसायिक फसल के रूप में किया जाता है। 

तोरई की सब्जी की भारत में छोटे कस्बों से लेकर बड़े शहरों में खूब मांग है। क्योंकि यह अनेक प्रोटीनों के साथ खाने में भी स्वादिष्ट होती है। इस सब्जी की बाजारो में हमेशा मांग रहती है। 

तोरई की खेती के लिए मौसम और भूमि कैसी होनी चाहिए ?

किसान तोरई की खेती मानसून और गर्मी दोनों सीजन में खेती कर सकते हैं। तोरई को ठंड के समय में भी ज्यादा उगाया जाता है। तोरई की रोपण उचित जल निकासी वाली भारी मध्यम मृदा में किया जाना चाहिए। 

तोरई की शानदार फसल के लिए कार्बनिक पदार्थो से युक्त उपजाऊ मध्यम और भारी मृदा उपयुक्त मानी जाती है, जिसमें जल निकासी की भी बेहतर व्यवस्था होनी चाहिए। 

तोरई की 2 उन्नत किस्म

पूसा नस्दार : इस किस्म के फल एक जैसे लंबे एवं हरे रंग के होते हैं। यह किस्म 60 दिनों के पश्चात फूलती है। प्रत्येक बेल में 15 से 20 फल लगते हैं। 

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Co-1: यह एक हल्की किस्म है और फल 60 से 75 सेमी लंबे होते हैं। प्रत्येक बेल 4 से 5 किलो फल उत्पादक होती है।

तोरई के लिए खाद एवं उर्वरक प्रबंधन  

तोरई की खेती करने से पूर्व मृदा एवं जल का परीक्षण कृषकों को अवश्य कर लेना चाहिए। मृदा परीक्षण से खेत में पोषक तत्वों की कमी की जानकारी मिलती है। किसान परीक्षण रिपोर्ट के हिसाब से खाद और उर्वरक का इस्तेमाल कर बेहतर उपज हांसिल कर सकते हैं। 

रोपण के दौरान 20 किग्रा एन/हे 30 किग्रा पी एवं 30 किग्रा के प्रति हेक्टेयर डालें तथा 20 किग्रा एन की दूसरी खुराक फूल आने के समय डालें। साथ ही, 20 से 30 किलो एन प्रति हेक्टेयर, 25 किलो पी और 25 किलो के रोपण के समय डालें। 25 से 30 किग्रा एन की दूसरी किश्त 1 माह के बाद देनी होगी। 

तोरई की फसल को कीटों से बचाने का क्या उपाय है ? 

तोरई की फसल विशेष तोर पर केवड़ा और भूरी रोगों से प्रभावित होती हैं। तोरई फसल को रोगों से बचाने और बेहतरीन उपज पाने के लिए लिए इसके बीजों को बुवाई से पहले थाइरम नामक फंफूदनाशक 2 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करना चाहिए। 

1 लीटर पानी का छिड़काव करें और केवड़ा के नियंत्रण के लिए डायथीन जेड 78 हेक्टेयर में 10 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी का छिड़काव करें।

फरवरी में उगाई जाने वाली सब्जियां: मुनाफा कमाने के लिए अभी बोएं खीरा और करेला

फरवरी में उगाई जाने वाली सब्जियां: मुनाफा कमाने के लिए अभी बोएं खीरा और करेला

फरवरी का महीना खेती के लिहाज से बेहद शानदार होता है। वातावरण में कई फसलों के मानक के अनुसार नमी-ठंडी-गर्मी होती है। असल में, फरवरी एक ऐसा माह है जब ठंड की विदाई होती है और गर्मी धीरे-धीरे आती है। सच पूछें तो प्रारंभिक श्रेणी की गर्मी का आगमन फरवरी के आखिरी दिनों में शुरू हो ही जाता है। 

ऐसे में, किसान भाई क्या करें। किसान भाईयों के लिए यह माह बेहद मुफीद है। इस माह अगर वह ध्यान दे दें तो अनेक नकदी फसलों का अपने खेत में लगाकर बढ़िया पूंजी कमा सकते हैं।

फरवरी में बोएं क्या

पहला सवाल बड़ा मार्के का है। फरवरी में आखिर बोएं क्या। फरवरी में बोने के लिए नकद फसलों की लंबी फेहरिस्त है। आप फरवरी में सब्जियां बो सकते हैं। कई किस्म की सब्जियां हैं जो इस मौसम में ही बोई जाएं तो बढ़िया मुनाफ होता है।

कौन सी सब्जियां

फरवरी में आप करेला, खीरा, ककड़ी, अरबी, गाजर, चुकंदर, प्याज, मटर, मूली, पालक, गोभी, फूलगोभी, बैंगन, लौकी, करेला, लौकी, मिर्च, टमाटर आदि बो सकते हैं। इनमें बहुत सारी सब्जियां ऐसी हैं जो 90 दिनों का वक्त लेती हैं लेकिन कुछेक सब्जियां ऐसी भी हैं जो मात्र 50 से 60 दिनों में तैयार हो जाती हैं।

खेत की तैयारी

मान लें कि आप अपने खेत में खीरा बोना चाहते हैं। खीरा बोने के पहले आपके खेत की कंडीशन कायदे की होनी चाहिए। पहली शर्त यह है कि जो खेत की मिट्टी होनी चाहिए, वह रेतीली दोमट होनी चाहिए। दोमट मिट्टी में भी शर्त यह है कि उसमें जैविक तत्वों की प्रचुर मात्रा हो और पानी की निकासी उम्दा स्तर की हो। 

ऐसे, किसी भी जमीन पर आप अगर खीरा उगाना चाहेंगे तो फेल कर जाएंगे। यह बहुत जरूरी है कि दोमट मिट्टी हो और पानी ठहरे नहीं, निकास होता रहे। वैज्ञानिक भाषा में बात करें तो मिट्टी की गुणवत्ता पीएच 6 या पीएच 7 होनी चाहिए।

जमीन कैसे बनाएं

यह बेहद जरूरी है कि खेत में कोई घास-पतवार नहीं हो। यह बिल्कुल साफ-सुथरा होना चाहिए। दोमट मिट्टी को भुभुरा बनाने के लिए पूरे खेत को तीन से चार बार जोत लेना जरूरी होता है। हल-बैल से जोत रहे हैं तो पांच बार। ट्रैक्टर से जोत रहे हैं तो कम से कम 3 या अधिकतम चार बार जोतें। 

खेत जोतने के बाद मिट्टी में गाय के गोबर को मिलाएं। गाय का गोबर मिलाने के बाद खेत की उर्वरा शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। आप अन्य खाद का इस्तेमाल न करें तो बेहतर। जब गोबर मिला दिया गया तो अब आप 2.5 मीटर चौड़े और 60 सेंटीमीटर की लंबाई का फासला रख कर नर्सरी तैयार कर लें।

बिजाई

बिजाई फरवरी माह में करना उचित होता है। बीजों की बिजाई के वक्त 2.5 मीटर चौड़े नर्सरी बेड पर दो-दो बीज बोयें और दोनों बीजों के बीच में कम से कम 60 सेंटीमीटर का फैसला जरूर रखें। 

बीज की गहराई कम से कम 3 सेंटीमीटर होनी चाहिए। 3 सेंटीमीटर गहराई में आप जब बीज डालते हैं तो उसे पक्षी निकाल नहीं सकेंगे। फिर उन्हें मुकम्मल रौशनी और हवा भी मिल सकेगी।

कैसे करें बिजाई

खीरे की खेती के लिए छोटी सुरंगी विधि का भारत में बहुत प्रयोग किया जाता है। इस विधि के तहत 2.5 मीटर चौड़े नर्सरी के बेड पर बिजाई होती है। बीजों को बेड के दोनों तरफ 45 सेंटीमीटर के फा.ले पर बोया जाता है। बिजाई के पहले 60 सेंटीमीटर लंबे डंडों को मिट्टी में गाड़ देना चाहिए। 

फिर पूरे खेत को प्लास्टिक शीट से कवर कर देना चाहिए। जब मौसम सही हो जाए तो प्लास्टिक को हटा देना चाहिए। माना जाता है कि खीरे के बीज को गड्ढे में ही बोना चाहिए। आप चाहें तो गोलाकार गड्ढे बना कर भी बीज डाल सकते हैं।

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, एक एकड़ खेत में खीरे का एक किलोग्राम बीज काफी है। प्रति एकड़ एक किलोग्राम बीज इसका आदर्श फार्मूला है।

उपचार

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, बिजाई से पहले ही खीरे की फसल को कीड़ों और अन्य बीमारियों से बचाने के लिए अनुकूल रासायनिक का छिड़काव करना चाहिए। बेहतर यह हो कि आप बीजों का 2 ग्राम कप्तान के साथ उपचार कर लें, फिर बिजाई करें।

खीरे की किस्में

  • पंजाब खीरा

यह 2018 में जारी की गई किस्म है। इसके फल हरे गहरे रंग के होते हैं। इनका टेस्ट कड़वा नहीं होता। औसतन इनका वजन 125 ग्राम का होता है। इसकी तुड़ाई आप फसल बोने के 60 दिनों के भीतर कर सकते हैं। फरवरी में अगर आप यह फसल बोते हैं तो माना जा सकता है कि प्रति एकड़ 370 क्विंटल खीरा आपको मिलेगा।

  • पंजाब नवीन खीरा

यह आज से 14 साल पुरानी किस्म है। इसका आकार बेलनाकार होता है। इस फसल में न तो कड़वापन होता है, न ही बीज होते हैं। यह 68 जिनों में पक जाने वाली फसल है। इसकी पैदावार 70 क्विंटल प्रति एकड़ ही होती है।

करेले की बुआई

करेले की बुआई दो तरीके से होती हैः बीज से और पौधे से। आपकी जिससे इच्छा हो, उस तरीके से बुआई कर लें। बाजार में बीज और पौधे, दोनों मौजूद हैं। 

करेले के दो से तीन बीज 2.5 से 5 मीटर की दूरी पर बोएं। बोने के पहले बीज को 24 घंटे तक पानी में जरूर भिगोना चाहिए ताकि अंकुरण जल्द हो। जो नदियों के किनारे का इलाका है, वहां करेले की बढ़िया खेती होती है। खेती के पहले जमीन को जोतना बेहद जरूरी है। 

इसके बाद दो से तीन बार जमीन पर कल्टीवेटर चलवा देना चाहिए। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है, अंकुरण में भी तेजी आती है। उम्मीद है, हमारी दी हुई यह जानकारी आपकी आमदनी बढ़ाने में फायदेमंद साबित होगी।

किसान भाई महीनों के अनुरूप सब्जी उगाकर तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं ?

किसान भाई महीनों के अनुरूप सब्जी उगाकर तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं ?

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां के ग्रामीण क्षेत्रों की 70% फीसदी से ज्यादा आबादी कृषि व कृषि संबधी कार्यों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है। हम लोग खेती-किसानी का कार्य हम जितना सहज समझते हैं, वास्तविकता में यह उतना ज्यादा आसान नहीं है। 

दरअसल, खेती में भी कृषकों को जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। कृषि क्षेत्र के अंदर सर्वाधिक जोखिम फसल को लेकर है। अगर उचित समय पर फसल की बुवाई कर दी जाए तो पैदावार शानदार हांसिल हो सकती है। 

वहीं अगर समय का प्रतिकूल चुनाव किया गया तो कोई सी भी फसल बोई जाए उत्पादन बहुत कम हांसिल होता है। परिणामस्वरूप, किसानों की आमदनी में भी गिरावट आ जाती है। 

किसानों को प्रत्येक फसल की शानदार उपज प्राप्त हो सके इसके लिए हम आपको बताएंगे कि आप किस महीने में कौन-सी सब्जी की बुवाई करें। जिससे आपको ज्यादा उपज के साथ ही बेहतरीन लाभ हांसिल हो सके। माहवार सब्जी की खेती कृषकों के लिए सदैव लाभ का सौदा रही है। 

किसान भाई जनवरी के महीने में इन फसलों को उगाएं

किसान भाइयों को वर्ष के प्रथम महीने जनवरी में किसान भाईयों को मूली, पालक, बैंगन, चप्पन कद्दू, राजमा और शिमला मिर्च की उन्नत किस्मों की बुवाई करनी चाहिए। 

किसान भाई फरवरी के महीने में इन फसलों को उगाएं

फरवरी के महीने में राजमा, शिमला मिर्च, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, फूलगोभी, बैंगन, भिण्डी, अरबी, ग्वार बोना ज्यादा लाभदायक होता है। 

किसान भाई मार्च के महीने में इन फसलों को उगाएं

किसान भाइयों को मार्च के महीने में लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, भिंडी, अरबी, ग्वार, खीरा-ककड़ी, लोबिया और करेला की खेती करने से लाभ हांसिल हो सकता है। 

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किसान भाई अप्रैल के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई अप्रैल के महीने में चौलाई, मूली की बुवाई कर सकते हैं। 

किसान भाई मई के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई मई के महीने में मूली, मिर्च, फूलगोभी, बैंगन और प्याज की खेती से शानदार पैदावार अर्जित कर सकते हैं। 

किसान भाई जून के महीने में इन फसलों को उगाएं  

कृषक जून के महीने में किसानों को करेला, लौकी, तुरई, पेठा, बीन, भिण्डी, टमाटर, प्याज, चौलाई, शरीफा, फूलगोभी, खीरा-ककड़ी और लोबिया आदि की बुवाई करनी चाहिए।

किसान भाई जुलाई के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई जुलाई के महीने में खीरा-ककड़ी-लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, भिंडी, टमाटर, चौलाई, मूली की फसल लगाना ज्यादा मुनाफादायक रहता है।

किसान भाई अगस्त के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई अगस्त के महीने में बीन, टमाटर, काली सरसों के बीज, पालक, धनिया, ब्रसल्स स्प्राउट, चौलाई, गाजर, शलगम और फूलगोभी की बुवाई करना अच्छा रहता है।

किसान भाई सितंबर के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई सितंबर के महीने में आलू, टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्ता गोभी, धनिया, सौंफ के बीज, सलाद, ब्रोकोली, गाजर, शलगम और फूलगोभी की खेती से शानदार उपज प्राप्त हो सकती है।

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किसान भाई अक्टूबर के महीने में इन फसलों को उगाएं 

किसान भाई अक्टूबर के महीने में काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्ता गोभी, धनिया, सौंफ के बीज, राजमा, मटर, ब्रोकोली, सलाद, बैंगन, हरी प्याज, लहसुन, गाजर, शलगम, फूलगोभी, आलू और टमाटर की खेती करना लाभकारी हो सकता है।

किसान भाई नवंबर के महीने में इन फसलों को उगाएं 

किसान भाई नवंबर के महीने में टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्ता गोभी, शिमला मिर्च, लहसुन, प्याज, मटर, धनिया, चुकंदर, शलगम और फूलगोभी की फसल को उगाकर कृषक बेहतरीन लाभ कमा सकते हैं।

किसान भाई दिसंबर के महीने में इन फसलों को उगाएं 

किसान भाई दिसंबर के महीने में पालक, पत्ता गोभी, सलाद, बैंगन, प्याज, टमाटर, काली सरसों के बीज और मूली की खेती से बेहतरीन मुनाफा अर्जित किया जा सकता है।

सेवानिवृत एनएसजी कमांडो ने खेती-किसानी में महारथ हांसिल की

सेवानिवृत एनएसजी कमांडो ने खेती-किसानी में महारथ हांसिल की

किसान मुकेश का कृषकों से कहना है, कि अपने खेत के कुछ इलाकों में हर किसी को बाग लगाना चाहिए। इससे आमदनी भी बढ़ जाती है। साथ ही, लोगों को गौपालन भी करना चाहिए। एनएसजी कमांडो का नाम कान में पड़ते ही बड़े- बड़े आतंकियों के पसीने आ जाते हैं। यह इतने फुर्तीले होते हैं, कि पलक झपकते ही चीते की भांति वार करते हैं। परंतु, आज हम एक ऐसे एनएसजी कमांडो के विषय में बात करेंगे, जो दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के उपरांत अब खेती- किसानी में महारथ हासिल कर रहे हैं। वे खेती से वर्ष में लाखों रुपये की आमदनी कर रहे हैं। विशेष बात यह है, कि रिटायरमेंट लेने के पश्चात ये आधुनिक विधि से बागवानी कर रहे हैं। इनके बाग में अनार, अमरूद, नींबू, खजूर और तरबूज- खरबूज समेत विभिन्न प्रकार की फसलें लहलहा रही हैं।

एनएसजी कमांडो किसान का नाम और गांव क्या है

बतादें, कि इस एनएसजी कमांडो किसान का नाम मुकेश मांजू है, जो कि राजस्थान में पिलानी के निवास हैं। पूर्व में मुकेश एनएसजी में कमांडर थे। वर्ष 2018 में रिटायरमेंट लेने के उपरांत उन्होंने जैविक विधि से खेती चालू की। फिर देखते ही देखते इनकी किस्मत चमक गई। हालांकि, उन्होंने कहा है, कि रिटायरमेंट लेने से पूर्व ही वर्ष 2012 में ही अपने पिता के साथ मिलकर खेती में हाथ बटाना चालू कर दिया था। उन्होंने पारंपरिक के स्थान पर आधुनिक विधि से खेती करना शुरू किया। उन्होंने अपने बाग में कीनू, खेजड़ी, नींबू, बेर और खजूर समेत विभिन्न प्रकार के फलों के वृक्ष लगाए हैं। उन्होंने बताया है, कि वे जैविक ढ़ंग से खेती कर रहे हैं। हालांकि, खजूर की खेती के लिए उन्हें सरकार की ओर से अनुदान भी प्राप्त हुआ है।

एनएसजी कमांडो की आय पूर्व के तुलना में 10 गुना बढ़ गई है

विशेष बात यह है, कि मुकेश मांजू ने अपने बाग में एग्रो-टुरिज्म भी चालू कर दिया है। लोग उनके खेत पर आकर रुकते हैं। साथ ही, प्रकृति का आनंद उठाते हैं। इस दौरान मुकेश उन्हें फ्रूट्स भी खिलाते हैं। जाते वक्त टूरिस्ट मुकेश से बहुत सारे फ्रूट्स एवं सब्जियां भी खरीदते हैं। उन्होंने बताया है, कि खेती से उनकी आमदनी पहले की तुलना में 10 गुना बढ़ गई है। आज वह वार्षिक 25 लाख रुपए की आमदनी कर रहे हैं।